संपादकीय

ट्रैफिक व्यवस्था पर भीड़ भारी

सड़क पर बढती भीड़ अब ट्रैफिक व्यवस्था पर भारी पड़ रही हैं। रोज व्यवस्था सुधारने की बातें होती हैं लेकिन हालात सुधरते नही। हालत यह है जैसे चादर जरूरत से ज्यादा छोटी है। एक तरफ पैर ढंकते है तो दूसरी तरफ बदन उघड़ जाता हैं। अधिकारी ट्रैफिक से परेशान है और सड़क पर चलने वाले लोग व्यवस्था से। न व्यवस्था सुधर रही है और न लोगों की समस्या का समाधान हो रहा है। जिस तरह से विभागीय अधिकारी व्यवस्था बनाने में ओैर पब्लिक इस समस्या से जूझ रहे हैं, उससे लगता है कि सटीक समाधान की दिशा में हमारे कदम बढ ही नहीं पा रहे हैं। यानि कि मर्ज कुछ और है और दवा कुछ और दी जा रही है। इससे इलाज कहां संभव है। परिणाम सामने है कि रोज दुर्घटनाएं हो रही हैं और लोग मर रहे हैं या अपंग हो रहे हैं।

सुचारू ट्रैफिक के लिए जो नियम कायदे बने हैं, उनका पालन करना लोग अपनी हेठी समझते हैं। जगह-जगह सड़कों के किनारे लिखा मिल जाता है कि शराब पीकर वाहन न चलाएं, जगह मिलने पर ही ओवरटेक करें लेकिन लोग हैं कि मानते ही नहीं। खुद भी टक्कर खा रहे हैं और दूसरो को भी टक्कर दे रहे हैं।

सड़क की भीड़ केवल भारत की ही समस्या नहीं है। कई देशों मे ट्रैफिक समस्या है। कुछ देशों ने समाधान ढूंढ लिए और कुछ अभी सघर्ष कर रहे हैं। जिन देशों ने अपने देष की जरूरतों, सामाजिक ढांचे और संसाधनों को ध्यान मे रखा,वह इस समस्या से पार पा चुके है। लंदन, थाइलैंड, मलेशिया और जापान जैसे देशों मे लोग जाम से निजात पा चुके हैं। लंदन मे कई स्थान और बाजार ऐसे हैं, जहां केवल पब्लिक ट्रांस्पोर्ट से ही जाया जा सकता है। निजी वाहन या तो घर छोड़कर लोग जाते हैं अथवा पार्किग मे पार्क करतेे हैं। यह नियम पूरी सख्ती से लागू किया जाता है कि प्वाइंटेड बिंदुओं पर जाने के लिए पब्लिक ट्रांस्पोर्ट का ही सहारा ले। कुछ देशों ने एक और विकल्प तैयार किया है। बाजार अथवा भीड़-भाड़ वाले स्थान पर यदि कोई अपनी गाड़ी से जाता है तो उसके लिए उसेएक तयशुदा राशि टैक्स के रूप में अदा करनी पड़ती है।

अपने देश की बात करें जो यह समस्या किसी एक शहर की नहीें है। देश के प्रायः सभी छोटे-बड़े श्र इस समस्या से जूझ रहे हैं और ट्रेैफिक नियमों का परलन न करने से देश की सड़के रोज खून से लाल हो रही है। दरअसल ट्रैफिक के दो पहलू हैं-शहरी ट्रैफिक हाई-वे ट्रैफिक। शहरी ट्रैफिक जाम जैसी समस्या को जन्म देता है जिसमें बेशकीमती तेल का दुरुपयोग होता है और हाई-वे ट्रैफिक दुर्घटनाओं को दावत देता है जिसमे वेशकीमती जानें जाती हैं। सुचारू ट्रैफिक की व्यवस्था से दोनों को रोका जा सकता है लेकिन इसके लिए हमें परंपरागत ट्रैफिक व्यवस्था को अपनाने की ओर उन्मुख होना पढ़गा।

केसी हो हमारी परंपरागत ट्रैफिक व्यवस्था, इस ओर भी हमें ध्यान देना होगा। अभी तो केवल हवा में तीर मारे जा रहे हैं। सड़कों के किनारे चेतावनी लिख देने मात्र से काम नहीं चलने वाला, जो ट्रफिक प्लान बने, उस पर अमल भी उसी तत्परता से हो। इस दिशा मे एक बात और आड़े आ रही है। ट्रैफिक की समस्या के समाधान में लोगों का जो सहयोग मिलना चाहिए वह नहीं मिलता। समस्याओं को टालना, उनका सामना न करना या अस्थाई समाधान खोजना लोगों की आदत बन गई है। शहरों का अंधाधंुध ओैर बिना समझे-बूझे विस्तार, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अभाव, सड़को और पुलों का अभाव, यातायात के नियमों का पालन न करना आदि कारण हैं जिन पर समग्र रूप् से विचार किए जाने की जरूरत है। प्रशासन का रवैया टालने वाला है। जाहिर हैं समस्या के प्रति गंभीर रूझान का अभाव और व्यक्तिगत ढंग से समाधान खोजने की प्रवृति से समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।

एक समस्या और है जो हमारी सोच से जुड़ी है। सड़को पर चलने वाली गाड़ियां संपन्नता का प्रतीक बन गई हैं। इसका परिणम साफ दिख रहा है कि चार सदस्यों के संपन्न परिवारो मे चार नहीं छह-छह गाड़िया है और जब वह कहीं निकलते हैं जो अलग-अलग गाड़ियो मे सड़को पर उतरते हैं। संपन्नता बढ़ी है। जो लोग पहले साइकिलों से चलते थे, अब वह गाड़ियो से चलने लगे हैं। संपन्नता का बढना किसी भी देश और शहर की आवष्यकता तथा उपलब्धता को भी याद रखना जरूरी है। सडकें कम हो अथवा उनकी चौड़ाई कम हो तो संपन्न लोगों को स्वतः ही इससे बचना चाहिए। लेकिन हमारे देश में इसका उल्टा हो रहो है। अपने शहर की अति व्यस्त बाजार में ही क्यों न जाना हो, लेकिन कार से ही जाएंगे और कार वहां तक जाएगी, जहां हमें खरीदारी करनी होगी, भले ही बाजार मे कितनी भीड़ क्यो न हो। इससे बचना होगा और पार्किग की व्यवस्था करनी ही होगी तथा सुचारू ट्रैफिक के लिए जो नियम बानाए गए है उनका पालन करना ही होगा।
आज ट्रैफिक लाइटों का भी अतिक्रमण करते लोगों को देखा जा सकता है। उन्नीसवीं शताब्दी मे जब ट्रैफिक लाइट की शुरूआत हुई तो उस समय मोटर गाड़ियो का प्रचलन नहीं था। लंदन मे ब्रिटिश पार्लियामेंट हाउस के निकट दुनिया की पहली ट्रैफिक लाइट लगी थी। इसके नीचे एक लालटेन रखी जाती थी और लाइट को घुमाया जाता था। बाद मे इसमें काफी सुधार हुआ। 1912 मे एक पुलिस अधिकारी लेस्टर वायर ने इसका आविश्कार किया। आज शहरों के चौराहों तथा दुर्घटना संभावित स्थानों पर ट्रैफिक लाइट लगी होती है, लेकिन लोग उसका अनुसरण नहीं करते जो कि दुर्घटनाओं और जाम का कारण बनती हैं। दुर्घटनाओं और सड़कों पर लगने चाले जाम से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि यमों का पालन सख्ती से हो और भीड़भाड़ वाले स्थानों पर वाहन प्रतिबंधित किए जाएं।

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